Lekhika Ranchi

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प्रेमाश्रम--मुंशी प्रेमचंद


60.

गायत्री के आदेशानुसार ज्ञानशंकर २००० रुपये महीना मायाशंकर के खर्च के लिए देते जाते थे। प्रेमशंकर की इच्छा थी कि कई अध्यापक रखे जायें, सैर करने के लिए गाड़ियाँ रखी जायँ, कई नौकर सेवा-टहल के लिए लगाये जायँ, पर मायाशंकर अपने ऊपर इतना खर्च करने को राजी न हुआ। प्रेमशंकर को मजबूर हो कर उसकी बात माननी पड़ी। केवल दो अध्यापक उसे पढ़ाने आते थे। फारसी पढ़ाने के लिए ईजाद हुसेन और संस्कृत पढ़ाने के लिए एक पंडित। सवारी के लिए एक घोड़ा भी था। अंग्रेजी प्रेमशंकर स्वयं पढ़ाते थे। गणित ज्वालासिंह के जिम्मे था, डॉक्टर सप्ताह में दो दिन गाने की शिक्षा देते थे, जिसमें यह निपुण थे और दो दिन आरोग्य शास्त्र पढ़ाते थे। डॉक्टर इर्फान अली अर्थशास्त्र के ज्ञाता थे। सप्ताह में दो दिन कानून सिखाते और दो दिन अर्थशास्त्र की व्याख्या करते। कालेज के कई विद्यार्थी शहर से इन व्याख्यानों को सुनने के लिए आ जाते थे और प्रियनाथ का संगीत समाज तो सारे शहर में प्रसिद्ध था। इधर की बचत मित्र-भवन इत्तहादी अनाथालय और प्रियनाथ के चिकित्सालय के संचालन में खर्च होती थी। विद्यावती के नाम से बीस-बीस रुपये की दस छात्रवृत्तियाँ भी दी जाती थी। इतना सब खर्च करने पर भी महीने में खासी बचत हो जाती थी। इन तीन वर्षों में कोई २५ हजार रुपये जमा हो गये थे। प्रेमशंकर चाहते थे कि ज्ञानशंकर की सम्मति ले कर माया को कुछ दिनों के लिए यूरोप, अमेरिका आदि देशों में भ्रमण करने के लिए भेज दिया जाये। इस धन का इससे अच्छा उपयोग न हो सकता था। पर मायाशंकर की कुछ और ही इच्छा थी। वह यात्रा करने के लिए उत्सुक था, पर एक हजार रुपये महीने से ज्यादा खर्च न करना चाहता था। इन घन के सदुपयोग की उसने दूसरी ही विधि सोची थी, पर प्रेमशंकर से यह प्रकट करते हुए सकुचाता था। संयोग से इसी बीच में उसे इसका अच्छा अवसर मिल गया।

लाला प्रभाशंकर ने प्रेमशंकर को लखनपुर के मुकदमे से बचाने के लिए जो रुपये उधार लिए थे उसकी अवधि तीन साल थी। यह मियाद पूरी हो गयी थी, पर रुपये का सूद तक न अदा हुआ था। पहले प्रेमशंकर को इस मामले की जरा भी खबर न थी, पर जब महाजन ने अदालत में नालिश की तो उन्हें खबर हुई। रुपये क्यों उधार लिए गये, यह बात शीघ्र ही मालूम हो गयी। तब से यह घोर चिन्ता में पड़े हुए थे, यह रुपये कैसे दिये जायें? यद्यपि मुकदमे में रुपये का एक ही भाग खर्च हुआ था, अधिकांश खाने-खिलाने, शादी-ब्याह में उड़ था, पर यह हिसाब-किताब करने का समय न था। प्रेमशंकर ऋण का पूरा भार लेना चाहते थे। लेकिन रुपये कहाँ से आयें? वे कई दिन इसी चिन्ता में विकल रहे। कभी सोचते ज्ञानशंकर से माँगूँ, कभी प्रियनाथ से माँगने का विचार करते, पर संकोचवश किसी से कहते न बनता था।

एक दिन वह इसी उधेड़-बुन में पड़े हुए थे कि भोला आ कर खड़ा हो गया और उन्हें चिन्तित देख बोला–  बाबूजी आज-कल आप बहुत उदास रहते हैं, क्या बात है? हमारे लायक कोई काम हो तो बताइए, भरसक उसे पूरा करेंगे।

प्रेमशंकर को भोला से बहुत स्नेह था। इनके सत्संग से उसकी शराब और जुए की आदत छूट गयी थी। वह इनको अपना मुक्तिदाता समझता था और इन पर असीम श्रद्धा रखता था। प्रेमशंकर भी उस पर विश्वास करते थे। बोले– कुछ ऐसी ही चिन्ता है, मगर तुम सुन कर क्या करोगे?

भोला– और तो क्या करूँगा? हाँ, जान लड़ा दूँगा।

प्रेम– जान लड़ाने से मेरी चिन्ता दूर न होगी, उसका कोई और ही उपाय करना पड़ेगा।

भोला– कहिए वह करने को तैयार हूँ। जब-तक आप न बतायेंगे पिण्ड न छोड़ूँगा।

अन्त में विवश हो कर प्रेमशंकर ने कहा– मुझे कुछ रुपयों की जरूरत है और समझ में नहीं आता कि कौन सा उपाय करूँ।

भोला– हजार दो हजार से काम चले तो मेरे पास हैं, ले लीजिए। ज्यादा की जरूरत हो तो कोई और उपाय करूँ।

प्रेम– हजार दो हजार का तुम क्या प्रबन्ध करोगे? तुम्हारे पास तो हैं नहीं, किसी से लेने ही पड़ेंगे।

भोला– नहीं बाबूजी, आपकी दुआ से अब इतने फटेहाल नहीं हैं। हजार से कुछ ऊपर तो अपने ही हैं। एक हजार मस्ता ने रखने को दिये हैं। दुर्गा और दमड़ी भी कुछ रुपये रखने को देते थे, पर मैंने नहीं लिये। पराये रुपये घर में रख कर कौन जंजाल पाले? कहीं कुछ हो जाय तो लोग समझेंगे इसने खा लिए होंगे।

प्रेम– तुम लोगों के पास इतने रुपये कहाँ से आ गये?

भोला– आप ही ने दिये हैं, और कहाँ से आये? जवानी की कसम खा कर कहता हूँ कि इधर तीन साल से एक दिन भी कौड़ी हाथ से छुई हो या दारू मुँह से लगायी हो। आप लोगों जैसे भले आदमियों के साथ रह कर ऐसे कुकर्म करता तो कौन मुँह दिखाता? मस्ता के बारे में भी कह सकता हूँ कि इधर दो-ढाई साल से किसी के माल की तरफ आँख उठा कर नहीं देखा। अभी थोड़े ही दिनों की बात है, भवानी सिंह की अंटी से पाँच गिन्नियाँ गिर गयी थीं। मस्ता ने खेत में पड़ी पायीं और उसी दिन जा कर उन्हें दे आया। पहले इस बगीचे से फल-फलारी तोड़ कर बेच लिया करता था, पर अब यह सारी आदतें छूट गयीं। दुर्गा और दमड़ी गाँजा-चरस तो पीते हैं, लेकिन बहुत कम और मैंने उन्हें कोई कुचाल चलते नहीं देखा हम अभी रोटी, दाल, तरकारी खा कर दो-तीन सौ रुपये बचा लेते हैं। तो कहिए, जितने रुपये मेरे पास हैं वह लाऊँ?

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